धर्म

Saraswati Puja 2024: वसंत पंचमी के साथ देवी सरस्वती की पूजा कैसे करें?

Saraswati Puja 2024

Saraswati Puja 2024: बसंत पंचमी से वसंत पर्व को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इस दिन विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री सरस्वती की पूजा भी महत्वपूर्ण है।

यहाँ, वसंत का अर्थ अंग्रेजी में वसंत है। वसंत ऋतु में सब कुछ सुंदर होता है, प्रकृति रंग-बिरंगे कपड़े पहनती है और बसंत पंचमी भी इसी ऋतु में आता है।

ऋतुराज है वसंत (Spring)

Saraswati Pujaव्रत चंद्रिका उत्सव अध्याय क्रमांक 36 में बताया गया है कि बसंत पंचमी माघ शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। हमारे देश में, कुछ त्योहारों को किसी देवता की जन्मतिथि पर मनाया जाता है या किसी विशिष्ट घटना के उपलक्ष में, लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक सामाजिक त्योहार है। इसका संबंध किसी विशिष्ट घटना या देवता के जन्मदिन से नहीं है। वसंत-ऋतु के शुभ आगमन पर यह त्योहार मनाया जाता है। वसंत को ऋतुराज, या ऋतुओं का राजा कहा जाता है। राजा के आगमन पर जो बड़ा उत्सव मनाया जाता है, उसी प्रकार इस ऋतु में राजा के आगमन पर भी उत्सव मनाया जाना स्वाभाविक है।

Saraswati Puja: शास्त्रीय संस्करण हेमाद्रि में कहा गया है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को हरि का पूजन करना चाहिए। इस दिन तेल लगाकर स्नान करके आभूषण और वस्त्रों को धारण करके श्रीविष्णु भगवान को विधिवत् पूजा करें. पूजा सामान्य रूप से गन्ध, पुष्प, दीप, धूप और नैवेद्य से करें। स्त्री या पुरुष को इसके बाद पितृदेवों को अर्पित करना चाहिए।

बसंत पंचमी पर वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा  (Basant Panchami 2024 maa Saraswati puja vidhi)

संत पंचमी, जिसका दूसरा नाम श्रीपंचमी भी है, वाणी की अधिष्ठात्री Saraswati Puja होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण कहता है कि—

“माघ मासि सिते पक्षे, पञ्चम्यां पूजयेद्ध रिम् । पूर्वविद्धा प्रकर्तभ्या, वसन्तादौ तथैव च ॥ २ तैलाभ्यङ्गं ततः कृत्वा, भूषणानि च धारयेत् । नित्यं नैमित्तिकं कृत्वा, गुलालेनार्घषेद्ध रिम् ॥ ३ नारी नरो वा राजेन्द्र ! सन्तये पितृदेवताः । स्त्रचन्दनसमायुक्तो, ब्राह्मणान् भोजयेत्ततः॥ 

अर्थ:– श्रीकृष्ण ने सरस्वती के ऊपर अति प्रसन्न होकर कहा कि हे सुन्दरी! हमारे वरदान से माघ शुक्ल पंचमी के दिन तथा विद्यारम्भ के दिन संसार में मनुष्यगण, मनु आदि चौदह मनु, इन्द्रादिक सब देवता, बड़े बड़े मुनीन्द्र तथा मुक्ति की इच्छा करने वाले सन्त, सिद्ध लोग, नाग, गन्धर्व और किन्नर ये सब लोग प्रसन्नता से प्रत्येक कल्प में आपकी यथाविधि पजा करेंगे.

बसंत पचंमी पर पूजन कैसे करें?

निम्नलिखित प्रकार से भगवती Saraswati Puja करनी चाहिए। बंसंत पंचमी के एक दिन पहले नियमित रूप से उपस्थित रहें। दूसरे दिन प्रातःकाल संयमपूर्वक स्नान करके सन्ध्या, तर्पण और अन्य दिनचर्या से निवृत्त होकर भक्तिपूर्वक कलश स्थापित करें। पहले गणेश, सूर्य, विष्णु, शंकर और अन्य देवताओं की नैवेद्य, धूप, टीप आदि से पूजा करें, फिर अच्छे फल देनेवाली सरस्वती की पूजा करें।

वसंत पंचमी, Saraswati Puja करके वसंत के आगमन का उत्सव है। आज ही पहली बार गुलाल उड़ाई जाती है। सब लोग गुलाल उड़ाते हैं और बसंती रंग के वस्त्र पहनते हैं। आज से कई जगहों पर फाग या होली गाना शुरू हो गया है। आज से लेकर फागुन पूर्णिमा तक होली बहुत मस्ती से गायी जाती है और लोग इसका आनंद उठाते हैं।

Basant Panchami पूजन सामग्री सूची देखें, मां सरस्वती की पूजा बिना इन चीजों के अधूरी है

Saraswati Puja: गेहूं और जौ की नमी बालि (अन्न) को किसान अपने खेत से घर लाते हैं और उसमें घी और गुड़ मिलाकर अग्नि में हवन करते हैं। हमारे यहां किसी नई चीज को खाने से पहले उसे किसी शुभ तिथि को अग्नि या देवता को अर्पित कर देते हैं। देवता को चढ़ाने के बिना खाना वर्जित है। इसलिए आज नए जौ और गेहूं को अग्नि में हवन करने लगते हैं, और फिर उसे प्रयोग में लाने लगते हैं। बसंत पंचमी का यह लौकिक रूप है।

हमारा सामाजिक त्योहार बसंत पंचमी है। यह वसंत ऋतु, जिसे हम वसंत ऋतु के नाम से जानते हैं, का प्रतीक है। वसंत आते ही दिल में अनुभव करते हैं। यह हमारे महान उत्साह का प्रतीक हैं। वसंत ऋतुओं का राजा कहलाता है, क्योंकि इस समय पेड़ों में पतझड़ के कारण नए कोमल पत्ते खिलते हैं। जंगल में पलाश के वृक्षों पर चमकीले रंग के नए पुष्प मन को बरबस खींच लेते हैं। रंग-बिरंग फूलों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। कोयल की कूक अपने कानों से अमृत निकालने लगती है।नई मंजरी आम के वृक्षों को सुशोभित करती है।

पान करने के लिए फूलों पर बैठे हुए भौंरों की मधुर और मीठी आवाज़ मन को चुरा लेती है। प्रकृति धूल उड़ाने लगती है, जब पुरवैया हवा जोरों से बहती है। हरे-हरे खेतों में सरसों के पीले पीले फूलों को देखकर मन खुश हो जाता है। नए रंग और समां हर जगह दिखाई देते हैं। लोगों में एक अजीब तरह की खुशी छाई रहती है। प्रकृति को प्रसन्न करने वाले तथा मन को प्रसन्न करने वाले वसंत के आगमन का उत्सव मनाना स्वाभाविक है। वसंत पंचमी का महत्व यही है।

बसंत पचंमी से जुड़े एक पक्ष पर दृष्टी डालते हैं जब लोग माता सरस्वती और ब्रह्म जी को पिता पुत्री मानते हैं :–

स्वामी निग्रहाचार्य अनुसार कई सरस्वती हुईं हैं :–
1) नील सरस्वती – तारा देवी को नील सरस्वती कहतें हैं.
2) अनिरुद्ध सरस्वती – तंत्र उपासना के लिए प्रख्यात हैं.
3) महासरस्वती – जगत जननी ही महासरस्वती हैं.
4) ब्राह्मी सरस्वती – ब्रह्म देव की पत्नी.
5) ब्रह्मयोनी सरस्वती – ब्रह्म देव की पुत्री.
6) भरती सरस्वती – भारतवर्ष में अपनी एक कला से पधारकर नदीरूप में प्रकट हुई उन्हें भारतीय भी कहा गया (ब्रह्मा वैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 6).

इससे स्पष्ट होता हैं कि देवी आदि शक्ति के अनेक रूप और माया हैं और वही प्रकृति भी है.

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