आखिर क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि का त्यौहार, जानिए क्यों शिवजी को नहीं चढ़ाते तुलसी ?
आज महाशिवरात्रि है, यह पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि पर मनाया जाता है हमारे आराध्य शिवजी का स्वरूप अन्य सभी देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है और शिवलिंग को निराकार माना जाता है शिवजी श्मशान में रहते हैं बस में रामाते हैं शिवजी चंद्र रुद्राक्ष लंबे-लंबे चढ़ाव को श्रृंगार के रूप में धारण भी करते हैं और पूजा में बिल्वपत्र बेलपत्र धतूरा आंकड़े के फूल जैसी फूल पत्तियां चढ़ाई जाती है आज हम बताते हैं शिव जी के स्वरूप और उनसे जुड़ी कुछ खास मान्यताओं के बारे में…
शिवलिंग पर जल की धारा दूध और बिल्वपत्र चढ़ाने की परंपरा है ऐसा माना जाता है कि जल की धारा शीतलता देती है समुद्र मंथन के समय शिवजी ने विष का पान किया जिससे उनके शरीर में गर्मी बहुत अधिक बढ़ गई और इसी गर्मी को शांत करने के लिए शिवलिंग पर जल की धारा चढ़ाई जाती है शिवजी को बिल्वपत्र दूध दही घी आदि इसलिए भी चढ़ाया जाता है क्योंकि यह सब उन्हें शीतलता देते हैं।
पुराने समय में तुलसी शंखचूड़ नाम के एक असुर राक्षस की पत्नी थी तुलसी पतिव्रता थी और उसके पत्नी धर्म की वजह से शंख चूर्ण को कोई भी देवता पराजित नहीं कर पा रहा था उस समय भगवान विष्णु ने तुलसी के पति व्रत को खंडित कर दिया और शिव जी ने शंखचूड़ का वध किया, यही कारण है कि शिवलिंग पर कभी तुलसी नहीं चढ़ाई जाती।
शिवलिंग को शिव जी का निराकार स्वरूप हमारा क्या है जिसे किसी भी स्थिति में खंडित नहीं माना जाता यही कारण है कि खंडित शिवलिंग की भी पूजा की जाती है।
वैसे तो शिवजी को घर परिवार का देवता कहा गया है शिवजी का एक परिवार है फिर भी वह शमशान में रहते हैं और शिव जी की यह बातें हमें संसार की नश्वरता से अवगत कराते हैं जहां घर परिवार सुख सुविधा की हर एक चीज एक न एक दिन मस्त होनी है और जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसका शव शमशान ही पहुंचता है। मृत्यु की बाद हर प्राणी की आत्मा शिवजी में समा जाती है श्मशान वैराग्य का प्रतीक है।
समुद्र मंथन में सबसे पहले विश निकला था और इस विश्व की वजह से संपूर्ण सृष्टि के जीवो का जीवन संकट पर आ गया और तभी शिव जी ने उस विष को पी लिया लेकिन भगवान ने उस विष को कभी भी अपने कंठ से नीचे नहीं जाने दिया और गले में इसको धारण किए हुए शिवजी का गला नीला हो गया जिस कारण उन्हें नीलकंठ कहा जाता है।