चैतर वसावा: जिन आदिवासी लोगों पर अत्याचार हुआ है, अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो मानव अधिकार आयोग, जनजाति आयोग और युनो की कोर्ट में जाएंगे
बनासकांठा जिले के पाडलिया गांव में जो घटना घटी थी, उसकी सच्चाई जांचने के लिए AAP विधायक चैतर वसावा पाडलिया गांव पहुंचे थे। विधायक चैतर वसावा ने स्थानीय लोगों और पीड़ितों से मुलाकात की और इसके बाद मीडिया से बात करते हुए बताया कि 13 तारीख को वन अधिकारी, पुलिस अधिकारी और आदिवासी लोगों के बीच जो घटना हुई थी, उसकी सच्चाई जांचने के लिए हम यहां आए हैं। यहां एक बहन का घर तोड़ दिया गया, उसके छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। दरअसल उस दिन सुबह करीब 10 बजे पूरा काफिला यहां आता है और जिस कुएं से वे पानी पीते थे उसे भर दिया जाता है। जहां फसल खड़ी थी वहां JCB द्वारा गड्ढे खोदकर प्लांटेशन किया जाता है। यहां के लोगों ने निवेदन किया था कि यह क्षेत्र अनुसूची-5 में आता है तो इस कार्य के लिए ग्रामसभा की अनुमति क्यों नहीं ली गई? हमें पहले नोटिस क्यों नहीं दिया गया? इसके बाद उच्च पुलिस अधिकारियों के कहने पर कुछ पुलिसकर्मी 7 से 8 लोगों को पकड़कर ले जाते हैं। उन्हें छुड़ाने के लिए जब गांव के लोग प्रयास करते हैं तो तुरंत गांव के लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया जाता है। इस घटना में 32 से 35 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। तब किसके आदेश से पुलिस द्वारा 27 टीयर गैस के सेल छोड़े गए? किसके आदेश से 50 राउंड फायरिंग की गई? इतना सब होने के बाद लोगों ने अपने बचाव में पत्थरबाजी की, जिससे घटना आपसी हिंसा में बदल गई। इस घटना के पीछे छोटे लोग नहीं, बल्कि सरकार के उच्च अधिकारियों और मंत्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
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विधायक चैतर वसावा ने आगे बताया कि हम साफ तौर पर पूछते हैं कि एकतरफा FIR क्यों की गई? 27 लोगों के नाम हैं और 500 लोगों की भीड़ बताई गई है। अगर FIR करनी है तो पुलिस के उच्च अधिकारियों के खिलाफ भी FIR दर्ज की जाए और हमारे ऊपर की गई झूठी FIR रद्द की जाए, हमारी ये दो मांगें हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ और हमारे लोगों को झूठे तरीके से परेशान किया गया तो आने वाले दिनों में अंबाजी से उमरगाम तक के लोग एकजुट होकर कार्यालयों में जाएंगे और गांधीनगर का रास्ता भी पकड़ेंगे। हमारे लोगों को परेशान न किया जाए, यही हमारी भावना है। वहां के SP द्वारा मीडिया को बताया गया कि “आदिवासी लोगों ने भाले और तीर-कमान से हमला किया।” लेकिन आदिवासियों के पास ऐसे कोई भी हथियार नहीं थे। आदिवासी संवाद और संविधान में विश्वास रखते हैं। इसी कारण तीन घंटे तक चर्चा की गई, फिर भी सहमति नहीं बन पाई और लाठीचार्ज से हिंसक घटना हुई। यहां जिस बहन का घर तोड़ा गया, उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं। वे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी यहां रहते आए हैं और यह जमीन भी उनकी है। 2006 के वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्होंने दावा भी किया है, तो सरकार को उनका दावा मंजूर कर उन्हें पट्टा देना चाहिए। सरकार उन्हें पट्टा क्यों नहीं दे रही? उद्योगपतियों के इशारे पर काम करने वाली इस भाजपा सरकार के वन मंत्री और SP के इशारे पर यहां हिंसा हुई है। जिन भी आदिवासी लोगों पर अत्याचार हुआ है, अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो मानव अधिकार आयोग, जनजाति आयोग और युनो की कोर्ट में भी जाना पड़े तो हम जाएंगे।
