बिहार: बात जब बिहार की शराबबंदी की हो तो गम्भीर हो जाया करती है। दशकों प्रयास के बावजूद बिहार में आए शराबबंदी की कहानी उलझी हुई ही रही। हाल के दिनों में जिस तरह से बिहार में शराब से जुड़े मामलों का खुलासा हो रहा है और संदेहास्पद स्थिति में लोगों की मौत की वजह शराब बताई जा रही है, पिछले कुछ दिनों में बिहार में नालंदा और छपरा में जहरीली शराब से लोगों की मौत हुई है।
इस शराबबंदी कानून को लेकर एनडीए नीत सरकार में सत्तापक्ष जदयू और भाजपा में यदा-कदा आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चलता रहता है। हाल ही में जानकारी आई थी कि बिहार में अब शराबबंदी कानून को और कठोरता से लागू करने की जिम्मेदारी ‘सरकारी टीचरों’ को दी गई है। यानी अब शराब माफिया तथा शराबियों को चिह्नित करके उनके बारे में प्रशासन से खबर शेयर करने की जिम्मेदारी सरकारी अध्यापको एवं प्रिंसिपल को दी गई है।इसके लिए शिक्षा विभाग ने शुक्रवार को बाकायदा इसका आदेश जारी किया है।
शिक्षा विभाग ने चिट्ठी लिखकर सिर्फ उनसे शराबबंदी कानून को लेकर उनके सहयोग की मांग की है। बता दें कि हाल ही में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने प्रदेश के सभी क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक, जिला शिक्षा पदाधिकारी समेत अन्य अफसरों को एक चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में बताया गया है कि ऐसी सूचनाएं मिल रही हैं कि अभी भी कतिपय व्यक्तियों द्वारा चोरी-छुपे शराब का सेवन किया जा रहा है।
बता दें कि अभी कुछ दिनों पहले कोर्ट ने शराबबंदी कानून को लेकर सरकार से संशोधन करने को कहा था।बिहार में इस बात की चर्चा है कि बिहार विधानमंडल के आगामी बजट सत्र में शराबबंदी कानून में संशोधन का प्रस्ताव सरकार सदन में ला सकती है। नई व्यवस्था का मकसद न्यायालय में लंबित मामलों को कम करने के अलावा बड़े शराब माफियाओं और तस्करों को जल्द से जल्द सजा दिलवाना है।